भारत में मुर्गी पालन का व्यवसाय प्राचीन समय से किया जा रहा
है। हमारे देश में तकरीबन 5000 वर्ष पहले ही पोल्ट्री फार्म के व्यवसाय की शुरुआत की जा
चुकी है। मौर्य साम्राज्य में मुर्गी पालन उनका प्रमुख उद्योग रहा है। वह खेती के
अलावा मुर्गी पालन भी किया करते थे। उन्नीसवीं शताब्दी के पश्चात् इसे व्यवसाय के
रूप में पहचान मिल गयी। जिसके बाद से पोल्ट्री फार्म का व्यवसाय काफी लोकप्रिय
व्यवसाय के रूप में बना हुआ है। आज के समय में देश के तकरीबन 25-30 लाख लोग
मुर्गी पालन से रोगजार पा रहे हैं। चीन और अमेरिका के बाद अंडा उत्पादन के मामले
में भारत तीसरे स्थान पर है, और मांस उत्पादन में भारत को 5वा स्थान प्राप्त है।
मुर्गी
पालन का सबसे बड़ा एक फायदा यह भी है कि इसके लिए आपको अन्य बिजनेस की तरह काफी
ज्यादा राशि की जरूरत नहीं पड़ती है. कम राशि की मदद से भी आप मुर्गी पालन का
व्यवसाय शुरू कर सकते हैं। किसी भी कार्य को अगर लगन से किया जाये तो सफलता अवश्य
मिलती है बस जरूरत होती है शुरुआत की। किसी ने ठीक ही कहा हैः
हार हो जाती है जब मान लिया जाता है, जीत तब होती है जब ठान लिया जाता है।
ये
कहानी है पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी जिले के ब्लॉक अलीपुरद्वार-1 तथा ग्राम पंचायत पतलाखावा में अवस्थित एक ग्राम
सिमलाबारी के एक स्वयं सहायता समूह सगुनी की। आई.एफ.एफ.डी.सी. सिलीगुड़ी (प.बं.)
द्वारा वर्ष 2023-24 में आय जनित कार्यक्रम के अन्तर्गत मुर्गी पालन करने के
लिए सगुनी स्वंय सहायता समूह के सदस्यों को सोनाली प्रजाति के 600 चूजे प्रदान
किये गये। स्वयं सहायता समूह के सदस्य सोनाली मुर्गी पालन कर अपनी आमदनी को बढ़ा
रहे हैं। तीन से चार महीने में तैयार सोनाली मुर्गी की मांग अन्य ग्रामों में भी
तेजी से बढ़ रही है। उनके अंडे मांस और चूजों को अच्छे दामों पर बेचकर स्वयं सहायता
समूह के सदस्य अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। सगुनी स्वंय सहायता समूह के सदस्यों से
बात करने पर पता चला कि बाजार में इन अंडों की कीमत 8 से 10 रुपये है और मुर्गी 300 से 350 रुपये प्रति किलो में तथा इनके चूजे 50 रुपये में
आसानी से बिक जाते हैं, जबकि अन्य प्रजाति के मुर्गे एवं मुर्गिर्यों की कीमत 200 से 225 रुपये प्रति
किग्रा तक ही होती है। सगुनी स्वयं सहायता समूह के सदस्यों की आमदनी में हुई
बढ़ोत्तरी को देखकर दूसरे गाँव के स्वंय सहायता समूह के सदस्य भी इनसे चूजे खरीदकर
इसको व्यवसाय का रूप दे रहे हैं।
वर्तमान
में इस स्वयं सहायता समूह सदस्यों के पास 600 मुर्गियाँ है। जिनसे उन्हें प्रतिदिन 180 से 230 अंडे मिल जाते
हैं। उनमें से आधे अंडों को हैचरी में रख देते हैं और बाकी बाजार में बेंच देते
हैं। समूह के सदस्यों ने बताया कि अतिरिक्त आय कर मुर्गी पालन हेतु पोल्ट्री फार्म
का निर्माण किया गया है। प्रति चूजा 50/- रुपये के हिसाब से 300 चूजे क्रय करने पर 15,000/- रुपये व्यय होते हैं। 600 मुर्गियों की देखरेख, खान-पान, वैक्सीन, दवा इत्यादि मिलाकर प्रतिवर्ष 30,000/- रुपये का खर्च होता है। कुल मिलाकर 45,000/- रुपये का व्यय
होता है। जिसमें से 600 मुर्गी के चूजों में से 15 प्रतिशत चूजों की मृत्यु हो जाती है। बचे हुए 510 चूजों में से
औसतन 380 मुर्गियों द्वारा 210 अंडे प्रतिवर्ष, 10 रुपये प्रति अंडे की दर से स्वंय सहायता समूह को अंडों से
380x210x10 = 7,98,000/- रुपये प्रतिवर्ष तथा बचे हुए औसतन 130 मुर्गों को 400 रूपये प्रति
किलोग्राम बिक्री करने पर 130x400=52,000/- अर्थात् कुल 7,98,000/- + 52,000/- = 8,50,000 रुपये की अतिरिक्त आय होती है। यदि स्वयं सहायता समूह के
खर्चों को घटा दिया जाये तो भी स्वयं सहायता समूह को प्रतिवर्ष लगभग 8 लाख रुपये की
अतिरिक्त आय होती है। स्वयं सहायता समूह के सदस्यों द्वारा मुर्गी
पालन करके निरंतर आजीविका, स्वास्थ्य, बच्चों की शिक्षा में सुधार किया जा रहा हैं। आजीविका बढ़ने
से उनके जीवन में खुशहाली साफ झलकती है।