भारत संरचनात्मक दृष्टि से गांवों का देश है। भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि
की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। कुल कार्य बल की 54.6 प्रतिशत आबादी कृषि और उससे संबद्ध क्षेत्र के कार्यकलापों में लगी हुई है, इसलिए भारत को कृषि प्रधान देश की संज्ञा दी गई है। भारतीय किसान देश की रीढ़
की हड्डी के समान है। हमारे देश में सकल बुआई क्षेत्र, कुल
भौगोलिक क्षेत्र का 42.4 प्रतिशत है। हमारे देश के किसान
आज भी परंपरागत तरीके से खेती करते हैं जिससे उनकी स्थिति बहुत ही कमजोर होती जा
रही है। आधुनिकता के इस दौर में फसलों की उत्पादन क्षमता को बढ़ाना किसानों के लिए
एक महत्वपूर्ण कार्य हो गया है।
मेधापल्ली, ओडिशा राज्य के गंजाम जिले का एक
छोटा सा गाँव जो तहसील मुख्यालय पुरुषोत्तमपुर से 15
किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ के लोगांे का मुख्य व्यवसाय कृषि एवं मजदूरी है।
गाँव में छोटे-छोटे किसान हैं, जो सिर्फ एक सीजन के लिए अपनी जमीन
पर खेती करते थे। शुष्क अवधि के दौरान वे रोजगार की तलाश में वे अन्य राज्यों जैसे
गुजरात, आंध्र प्रदेश इत्यादि में पलायन कर जाते थे। कम उपज के कारण यहाँ के किसानों
की आर्थिक विपन्नता एक नासूर सी बन गई थी। घर का खर्च, बच्चों
की पढ़ाई, स्वास्थ्य आदि की समस्याओं ने इनका जीवन दुष्कर कर रखा था।
गाँव वालों की कम उपज, सिंचाई साधनों की कमी, अच्छे बीजों की अनुपलब्धता इत्यादि समस्याओं को देखते हुए आई.एफ.एफ.डी.सी.
द्वारा इफको की ग्रामीण आजीविका विकास परियोजना के तहत् यहाँ के किसानों को खेती
की तकनीकी जानकारी, सिंचाई संसाधन, संकर बीज, कीट नाशक दवायें इत्यादि का
प्रशिक्षण व सहयोग प्रदान किया गया। परियोजना के तहत् किसानों को मिर्च (दया
प्रजाति), बैगन, करेला, खीरा, फूलगोभी, पत्ता गोभी, टमाटर, बीन्स आदि का बीज उपलब्ध कराया गया। परियोजना के नियमानुसार, किसानों से बीज के मूल्य का 25 प्रतिशत भागीदारी भी ली गई। कृषि
विभाग, ओडिशा व आई.एफ.एफ.डी.सी. के स्टॉफ की देखरेख में नर्सरी तैयार कर उक्त
सब्जियों का तकनीकी रूप से पौधरोपण कराया गया। सिंचाई की समस्या के निदान हेतु
परियोजना के माध्यम से 3 बोर वैल, सिंचाई
पंपसेट, बैटरी स्प्रेयर मशीन, पावर स्प्रेयर सेट, स्प्रिंकलर सिस्टम, डिलीवरी पाईप आदि ग्रामीणों को
उपलब्ध कराये गये। वर्ष 2021-22 के दौरान 2035 हैक्टेयर क्षेत्र में सब्जी की खेती की गई जिससे कुल 60 परिवारों को लाभ प्राप्त हुआ। जिनमें से दस परिवारों (1. जगनाथ डोरा, 2. ए. लकानाथ डोरा, 3. ए. राजा डोरा, 4. एन. काशीनाथ डोरा, 5. बी. दशरथे डोरा, 6. अनाथा डोरा, 7. बी. सपान डोरा, 8. बी. गगन डोरा, 9. जी. जूलिया डोरा एवं 10. बी. बिरंची डोरा) की उपज में प्रति
हैक्टेयर 25-30 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। जिससे उन्हें 2.5 से 3.0 लाख रुपये की शुद्ध आमदनी हुई।
संकर बीज के प्रयोग एवं कृषि से संबंधित तकनीकी जानकारी प्राप्त होने से खरीफ
के दौरान यहाँ के किसान स्थानीय किस्म की तुलना में वर्षा आधारित 25 प्रतिशत अधिक फसल ले रहे हैं।
अब कृषक परिवारों को अपने खेत की सब्जियाँ बेचकर लाभ मिल रहा है जबकि पहले
किसानों की लागत भी वापस नहीं मिल पाती थी। अब किसानों ने बेहतर आजीविका हेतु उच्च
उत्पादक एवं नकदी फसलों की खेती शुरू कर दी है। अब किसान फलदार पौधों जैसे नारियल, पपीता, केला इत्यादि का रोपण कर रहे हैं, जिससे उनकी जमीन की
कीमत भी बढ़ गई है।
परियोजना के माध्यम से किसानों को दलहन बीज (मूँग, उड़द, मूंगफली) भी उपलब्ध कराया गया साथ ही बायो फर्टिलाईजर, नैनो
यूरिया, डी.ए.पी., सागरिका का स्प्रे कराया गया, 25 हैक्टेयर भूमि को सिंचित क्षेत्र में बदला गया जिससे दो फसलों के साथ-साथ
नकदी फसल भी हो रही है। ग्रामीणों को ताजी व हरी सब्जियाँ मिल रही हैं जो उनके
परिवार को पोषण व स्वास्थ्य लाभ दे रही हैं।
किसानों के जीवन में अभूतपूर्व बदलाव लाया है। धीरे-धीरे इनकी स्थिति अब बेहतर
हो रही है। अब ये किसान संपन्नता के साथ अपना जीवन यापन कर रहे हैं।
प्रारंभ में ग्रामवासी दूसरे गांवों में मजदूरी के लिए जाते थे लेकिन वर्तमान
में दूसरे गांव के लोग मेधापल्ली गांव में मजदूरी करने आते हैं। अब महिलायें अपने
खेतों के कार्यों के साथ-साथ आयजनित गतिविधियाँ जैसे मसाला पिसाई, आटा-चावल पिसाई, मछली पालन, मुर्गी
पालन इत्यादि भी कर रही हैं जिससे वे सशक्त व आत्मनिर्भर हुई हैं।
अब सभी किसान खुश नजर
आते हैं और इसका श्रेय वे इफको एवं आई.एफ.एफ.डी.सी. को देते हैं। वे कहते हैं कि
इफको एवं आई.एफ.एफ.डी.सी. के माध्यम से हमें इज्जत, सम्मान, आर्थिक स्थिति में सुधार, ज्ञान, कौशल, जागरूकता इत्यादि सब कुछ मिला जिसको हम पैसों से भी नहीं खरीद सकते थे। अब
हमारा व्यवसाय लाखों का हो चुका है और हम अपना जीवन यापन खुशी से कर रहे हैं।