गरीबी संसार के सबसे विकट समस्याओं में से एक है। गरीबी हमारे जीवन को
आर्थिक तथा सामाजिक दोनों ही रुप से प्रभावित करती है। गरीबी के कारण
लोग अपनी मूलभूत आवश्यकताएँ भी पूरी नहीं कर पाते है। कभी-कभी तो उनके पास खाने के
लिए भी कुछ नहीं होता है। वे अपना जीवन सिर्फ अपने लिए भोजन जुटाने में ही बिता
देते है।
लेकिन सच्ची लगन से किया गया सही परिश्रम इस समस्या से निजात दिला
सकता है। कहते हैं भाग्य का सहारा वही लोग लेते हैं, जो कर्म
हीन होते हैं। जो कर्म करते हैं वे अपने भाग्य को भी बदल दिया करते हैं-
कौन कहता है कि Nature और Signature कभी नहीं बदलता
अगर चोट ऊॅंगली पर
लगे तो Signature बदल
जाता है
और अगर
दिल पर लगे तो Nature
!
यह कहानी भी एक ऐसी महिला की है जिसने अपने कठिन परिश्रम से न सिर्फ
गरीबी को मात दी बल्कि समाज में अपनी एक पहचान भी बनाई।
मध्य प्रदेश के जिला सागर से 30
किलोमीटर दूर शाहपुर रोड पर ग्राम पंडरिया स्थित है। यहां पर आई.एफ.एफ.डी.सी.
द्वारा वर्ष 1997 से फार्म फॉरेस्ट्री परियोजना का कार्य प्रारंभ किया गया। इस गांव की
आबादी लगभग 5000 है। ज्यादातर ग्रामीणों की आय का स्रोत खेती बाडी एवं मजदूरी है। इस
परियोजना के अन्तर्गत सामाजिक, आर्थिक
विकास हेतु आई.एफ.एफ.डी.सी. संस्था द्वारा गांव में सरस्वती स्वयं सहायता समूह का
गठन किया गया। श्रीमती गीता बाई इसी समूह की सदस्य है। गीता बाई आय की कमी के कारण
मात्र 8वीं कक्षा तक ही पढ पाई। घर में खेती बाडी भी न के बराबर थी, इस कारण
गीताबाई के पास आमदनी का कोई खास जरिया नहीं था और इनके पति सागर स्थित वाशिंग पावडर की
फैक्टरी में काम करते हैं। परिवार में 4 सदस्य
हैं जिनका भरण पोषण प्रतिदिन दैनिक मजदूरी से होता था। चूंकि गीताबाई गांव घर
छोडकर बाहर काम करने नहीं जा सकती थी इसलिए उसने परिवार की गुजर-बसर हेतु घर पर ही
रहकर कुछ करने के बारे में सोचा।
इनकी कुछ
करने की इच्छा को ध्यान में रखकर आई.एफ.एफ.डी.सी. संस्था द्वारा उन्हें कृत्रिम
आभूषण बनाने का प्रशिक्षण दिलाया गया। इस प्रशिक्षण के बाद गीता बाई ने घर पर ही
आभूषण बनाने का कार्य प्रारंभ किया। घर के सभी कार्य करने के बाद वह आभूषण बनाती
है। जितना माल तैयार करती है, उसे
गांव-गांव में जाकर बेचने वाली महिला को दे देती है। वह आस-पास के गांव में जाकर
बिक्री करती है। उसे प्रति नग 1 रुपया
की कमाई हो जाती है। कुछ सामग्री घर से बिक्री होती है। गीता बताती है इस प्रकार
वह माह में लगभग 2000 से 2500 रुपये
की आमदनी कर लेती है। उसके या उसके आस-पास के गाँवों में जब कोई उत्सव होता है या
मेले आदि का आयोजन होता है तो उसकी बिक्री और भी बढ़ जाती है। सोने-चाँदी आदि के
आभूषण मँहगे होने के कारण कृत्रिम आभूषणों की ओर लोगों का रुझान बढ़ता जा रहा है, इसीलिए
गीता आने वाले समय में पूंजी एकत्र करके कृत्रिम आभूषणों का बड़ा कार्य करना चाहती
है।
आज गीता धीरे-धीरे कोई गाना गुन-गुनाते हुए खूबसूरत माला बना रही है।
वह बहुत खुश दिख रही है। बच्चे पढ़ने के लिए स्कूल गये हैं पति काम से फैक्टरी।
खाना, झाड़ू, बर्तन आदि से फुर्सत
होकर वह सुंदर कृत्रिम आभूषण बनाने लगती है। आभूषण बनाने के कौशल से ही उसकी
आजीविका अच्छे से चल पाती है। वह अपने परिवार ना सिर्फ भरण-पोषण कर रही है बल्कि
बच्चों की पढ़ाई-लिखाई भी करवा रही है।