एक पहल महिलाओं को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने की

एक पहल महिलाओं को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने की

 

PHOTO-2018-07-10-16-59-33.jpgवर्ष 2017-18 में आई.एफ.एफ.डी.सी. संस्था द्वारा इफको टोकियो समन्वित ग्रामीण विकास परियोजना के अन्तर्गत स्वयं सहायता समूह की बहनों को ग्राम स्तर पर सैनेट्री नेपकिन पैड बनाने की मशीन दी गई जिसमें 5 सदस्यों को एस.ए. इन्टरप्राइजेस मुम्बई द्वारा दो दिन का प्रशिक्षण भी कराया गया। इस प्रशिक्षण में पैड तैयार करने से लेकर] इसमें प्रयुक्त होने वाली सामग्री तथा मशीन चलाने और उसकी मरम्मत आदि के बारे में जानकारी प्रदान की गई।

इसके बाद इन पांच सदस्यों ने कुछ सेम्पल भी तैयार किये परन्तु अब एक समस्या आ गई कि इस मशीन को xk¡o में कहाँ लगाया जाये। एक ऐसे मकान की जरूरत थी जिसमें लाईट हो तथा जंहा पर बैठकर महिलाऐं काम कर सकें। इस हेतु ग्राम छायन में एक कमरा मिला जिसमें मशीन को लगाया गया और काम चालू किया गया परंतु यह कमरा ऐसा था कि यदि लाईट न हो तो इस कमरे में बैठना भी मुश्किल था। ऐसे में सदस्य काम करने से कतराने लगे और धीरे-धीरे सदस्यों ने काम पर आना कम कर दिया। कभी आते कभी नहीं आते ऐसा काफी समय तक चलता रहा। ऐसे में एक और समस्या खड़ी हो गई कि इस व्यवसाय को कहाँ और कैसे चालू किया जाये।

हमें ऐसे मकान की जरूरत थी जो पक्का] हवादार] रोशनीयुक्त हो, ताकि महिलाऐं बैठकर उसमें काम कर सकें परन्तु गंाव में तो कच्चे मकान हैं। लोग उसी में मवेशियों को बाँधते हैं और स्वयं भी रहते हैं। बरसात के मौसम में घरों के अन्दर पानी भी आ जाता है जिसकी वजह से काफी परेशानी होती है। ऐसी स्थिति में गांव में मशीन लगाना संभव नहीं हो पा रहा था।

एक दिन परियोजना की गतिविधियों को लेकर हो रही चर्चा के दौरान प्रत्येक गांव में सामुदायिक भवन बनाने की भी चर्चा हुई और रास्ता निकल आया कि यदि हम छायन गांव में सामुदायिक भवन बनाते हैं तो उसके बगल में पड़ी जमीन में क्यों न छोटे-छोटे तीन कमरे बनाये जायें जिसमें से हम एक कमरे में ये मशीन लगाकर उसमें इस उद्योग को चालू करें। बस छायन के देवनाराण के सदस्यों से बात की वे राजी हो गये ओर भवन बनाने का काम शुरू हो गया। साथ ही तीन कमरे भी बनाने शुरू कर दिए गये। इसके बाद जैसे ही कमरे तैयार हुये एक कमरे में मशीनों को लगाकर उसमें 10 महिलाओं को सैनेट्री नेपकिन पैड बनाने का 5 से 10 दिन का प्रशिक्षण परियोजना स्तर पर दिया गया जिससे इन महिलाओं की क्षमता में वृद्धि हो सके।

10 महिलाओं में से 4 महिलाऐं मिलकर अब इस काम को कर रही हैं। ये महिलाऐं मोटा मयंगा और छायन की हैं जो अब सैनेट्री नेपकिन पैड बनाने का काम कर रही हैं। इन्हें प्रति पैड एक-एक रुपया दिया जाता है। दिन में एक महिला 50 पैड बना लेती है। इस प्रकार चार महिलायें एक दिन में 50x4 = 200 पैड तैयार कर लेती हैं। एक पैकेट में 8 पैड होते हैं जिसकी बाजार में कीमत 40@& #i;s है। ये महिलाऐं माह में 25 दिन काम करती हैं इस प्रकार ये चार महिलाऐं माह में 5000 पैड तैयार करने का काम करती हैं।

4 महिलाओं द्वारा प्रति दिन 200 पैड बनाने पर 25 दिन में 5000 पैड तैयार होते हैं अर्थात् 25 दिन में 625 पैकट तैयार होंगे जिसमें से एक दिन में 200 पैड बनाने पर मेटैरियल का खर्च 258 रुपये आता है तो 25 दिन के मैटेरियल का खर्च 258 x 25 = 6450 रुपये आता है तथा एक दिन की मजदूरी 200 रुपये के हिसाब से 25 दिन की मजदूरी 5000 रुपये तथा पैकिग मटैरियल 800 का खर्च होगा। माह में 625 पैकट तैयार होते हैं तो 625 x 30 = 18750 कुल आमदनी होगी जिसमें उपरोक्त खर्च घटाने पर शुद्ध बचत 6500 रुपये होगी। यदि ये महिलाऐं ज्यादा उत्पादन करती हैं तो ज्यादा बचत होगी। कहने का तात्पर्य यह है कि यदि महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्म निर्भर बनाना है तो इस काम को ज्यादा से ज्यादा समय देकर ज्यादा मात्रा में उत्पादन करना होगा, तभी महिलाओं के सशक्तिकरण उद्देश्य पूरा होगा।

भारत में lSfuVjh uSifdu ds bLrseky को लेकर जागरुकता का अभाव है] जो स्वास्थ्य से संबंधित कई समस्याओं कारण बन सकता है। खासतौर से ग्रामीण इलाकों में रहने वाली महिलाओं में इसे लेकर कई तरह की भ्रांतियां देखने को मिलती हैं। संभवतः यही वजह है कि ग्रामीण इलाकों में अब तक सेनिटरी पैड के इस्तेमाल को लेकर बहुत कम जागरुकता है। हालांकि इसके पीछे एक कारण सेनिटरी पैड की लागत भी है। ग्रामीण इलाकों में रहने वाली हर महिला इसका खर्च नहीं उठा सकती।

एक स्टडी में ये बात सामने आई थी कि अभी भी हमारे देश में 88 फीसदी महिलाएं सेनिटरी नैपकिंस का प्रयोग नहीं करती हैं। वे आज भी पुराने तरीकों जैसे कपड़े, अखबारों या सूखी पत्तियों का प्रयोग करती हैं। इसका कारण ये है कि वे सेनेट्री नैपकिंस को खरीदने में सक्षम नहीं हैं। यही कारण है कि करीब 70 प्रतिशत महिलाएं reproductive tract infections से पीड़ित हैं। जहां तक कपड़े की बात है] तो ये एक पुराना तरीका है। पर जानकार कहते हैं कि बार-बार कपड़े को प्रयोग किए जाने के लिए धोना और फिर उसे धूप में सुखाने से महिलाएं अक्सर इन्फेक्शन का शिकार हो जाती हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार गांवों-कस्बों के स्कूलों में कई बच्चियां] पीरियड्स के दौरान 5 दिन तक स्कूल मिस करती हैं। यही नहीं] 23 प्रतिशत बच्चियां] माहवारी शुरू होने के बाद पढ़ाई छोड़ देती हैं।

इफको टोकियो समन्वित ग्रामीण विकास परियोजना के माध्यम से स्वयं सहायता समूह की सदस्याओं द्वारा कम लागत में अच्छी गुणवत्ता के पैड तैयार करवाये जा रहे हैं जिससे ग्रामीण इलाकों की महिलाओं में सैनिटरी नैपकिन के प्रयोग को लेकर जागरूकता फैलाई जा सके जिससे वे संक्रमण आदि बीमारियों से अपना बचाव कर सकें।