जमना समूह की पहचान बनी आटा चक्की


55समूह का संक्षिप्त परिचयः- यह समूह मोटा मयंगा के स्कूल फला के पास है इसका नाम जमना समूह है इसमें 10 महिलाएं हैं। यह समूह इफको-टोकियो समन्वित ग्रामीण विकास परियोजना आने के बाद वर्ष 2015 के नवम्बर माह में बना था। इस समूह की अभी तक 28 बैठक हो चुकी हैं। जब समूह शुरू हुआ था तो इसकी मासिक बचत 50/- रुपये प्रति माह थी, परंतु धीरे-धीरे इनकी मासिक बचत 100/- प्रति माह हो गई है। इनकी कुल बचत 14270/- रुपये है। ये अपनी बचत को आपस में एक-दूसरे की छोटी-मोटी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपयोग कर रही हैं। आंतरिक लोन पर दो रुपये प्रति सैकड़ा से लोन देती हैं पंरतु यदि कोई व्यक्ति गांव का हो या फिर दूसरे समूह का हो तो ये तीन रुपये सैकड़ा से एक निश्चित अवधि का इकरारनामा करके लोन देती हैं।

परियोजना पूर्व स्थितिः- मोटा मयंगा गांव में परियोजना से पहले किसी भी प्रकार का कोई समूह नहीं था, न ही किसी प्रकार की बचत होती थी और न ही महिलाओं को समूह संबधित किसी भी प्रकार की जानकारी थी। समूह की महिलायें खेती करती थीं या खाली समय में मजदूरी करती थीं या फिर जंगल से लकड़ी काटकर लाती थीं और उसे बेचकर आटा-चावल या दैनिक उपयोग की चीजें खरीदकर लाती थीं। यदि इन्हें ज्यादा पैसों की जरूरत पड़ती तो साहूकार के पास जाकर कर्ज लेतीं, जो 5/- सैकड़ा ब्याज की दर से मिलता था।

परियोजना आने के बादः- वर्ष 2015 में जब इफको टोकियो समन्वित ग्रामीण विकास परियोजना गांव में आई तब जमना समूह बनाया गया। इसके बाद ही महिला सदस्यों में जागरूकता आई। समूह का मतलब समझ में आया कि समूह होने से हमें एक-दूसरे के साथ मिलजुलकर रहने, एक-दूसरे की मदद करने, मुसीबत में सही सलाह मशविरा करके निर्णय लेने, एक जुट होकर किसी भी तरह की समस्या का सामना करने की ताकत प्राप्त होती है। साथ ही समूह की बचत का सही उपयोग कैसे करें, समूह हमें जीने का सही तरीका सिखाता है, अकेले रहकर हम कुछ भी नहीं कर सकते पर समूह में रहकर हम बहुत कुछ कर सकते हैं, समूह में वो ताकत है।


55वर्ष 2018 मई माह में संस्था ने हमारे समूह को आटा चक्की दी जिससे कि हमारा समूह आर्थिक रूप से मजबूत हो सके। हम सभी महिलाओं ने समूह की बैठक करके इस व्यवसाय की एक योजना बनाई कि हमारा समूह पिसाई की दर में अन्य की अपेक्षा कम रखेगातभी अन्य की अपेक्षा अच्छी पिसाई आयेगी। फिर हमारे समूह ने तय किया कि गेहूं की पिसाई दर एक रुपये प्रति किलो और मक्का की पिसाई 2/- प्रति किलो रखेंगे जबकि अन्य दुकानों में गेहूँ की पिसाई दर 2/- रुपये प्रति किलो और मक्का की पिसाई दर 2.5 प्रति किलो है। हमारी दर कम होने से लोग हमारे समूह में ज्यादा आयेंगेऔर यही हुआ कि हमारे आस-पास के जितने भी लोग हैं पिसाई दर कम होने से सुहागपुरा या कोई दूसरी चक्की में नहीं जाते बल्कि हमारे समूह की चक्की में आते हैं। हम लोग बहुत खुश है कि छोटा ही सही पर हमारे समूह का भी एक व्यवसाय है।


समूह की मासिक बैठक में समूह सदस्यों ने बताया कि शादी व्याह के समय और त्यौहारों के समय ज्यादा पिसाई आती है पर बाकी समय में कम पिसाई आती है, तो हमारे समूह ने चर्चा की और तय किया कि क्यों ना हम लोग इस चक्की से दाल बनाकर बेचें क्योंकि इस चक्की में हमने एक महिला को मूंग की दाल बनाकर दिया है इस चक्की में दाल ओर मसाले का बनाने का काम अच्छा होगा। इसलिए जब गेंहू और मक्का की पिसाई कम आती है, तब हमारा समूह चक्की की पिसाई से आये हुए पैसे से मूंग और उड़द खरीदकर उसकी दाल बनाकर बाजार में बेचेगें इससे समूह और मजबूत होगा।

आटा चक्की से आयः यह समूह आटा चक्की से गेहूँ व मक्का की पिसाई करके 1200-1500 रुपये प्रतिमाह की आय अर्जित कर लेता है। यह समूह की छोटी सी आमदनी है इसका एक रजिस्टर इस समूह ने बना रखा है जिसमें प्रतिदिन पिसाई का ब्यौरा मिलता है। बातचीत के दौरान इसके सदस्यों ने बताया कि गांव में एक और आटा चक्की आ गई है जिससे उधर के लोग हमारी चक्की में कम आते हैं। पिसाई करने मात्र से हमारे समूह की आमदानी नहीं बढ़ेगी, बल्कि अब हमने सोचा है कि गेंहू खरीदकर आटा पीसकर इसके 5 किलो की पैकिंग तैयार करेंगे और दाल बनाने का काम करेंगे ताकि समूह की आमदानी को बढ़ा सकें जो आय होगी चक्की की मरम्मत का पैसा छोड़कर एक साल में सभी महिलाओं को बांटा जायेगा। इस तरह की हमारे समूह की योजना हैं। सुन्दर ने अपनी क्षेत्रीय भाषा में कहा कि यो चक्की तो मारी समूह री पहचान बनी गई।