शिक्षा के प्रति जागरूकता को बढ़ा रहा “अक्षर परिचय अभियान”

गांव ताजपुर के बाहरी किनारे पर बसे मुसहर टोला के बच्चे, युवा व बूढ़ों के चेहरों पर थकान स्पष्ट दिख रही थी। कुछ बुजुर्ग आग में चूहा पका रहे थे, युवा उसे देख रहे थे, उनके दो छोटे बच्चे खाने के लिए टकटकी लगाये बैठे थे। ऐसी तस्वीर बिहार के उन गाँवों में अक्सर मिल जाती है जहाँ मुसहर जाति निवास करती है। वहाँ पर आज भी लोग चाव से चूहे खाते हैं।

लोग कहते हैं इसमें बुराई क्या है, हम लोगों की विवशता है, दो-तीन माह में राशन मिलता है, पेट कैसे भरेंगे। टोले में बच्चे पढ़ने नहीं जाते, टायर को लकड़ी से धक्का मार कर चलाते देखे जाते हैं। यह उनकी शिक्षा के प्रति सोच का प्रभाव है। केंद्र व राज्य की सरकारी योजनाओं की इन्हें जानकारी भी नहीं है। कहने को इनके उत्थान व जागरूकता को टोला सेवक रखा गया है, लेकिन वे भी सही में काम नहीं कर रहे।

बड़ी विडम्बना है कि, 21 वीं सदी में भी चूहा खाकर मानव जीवन व्यतीत किया जा रहा है और हम विकास की बातें कर रहे हैं। बिहार में इनके पिछड़ेपन के कारण इन्हें दलित के बाद महादलित श्रेणी में रखा गया है। जिन इलाकों में यह महादलित जाति है वहां सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से अब भी बेहद पिछड़ी है। आजादी से पहले मुसहर जाति इस कदर अभाव में गुजर बसर करने पर बेबस थी कि पेट भरने के लिए अनाज मयस्सर नहीं होता था। मजबूरी में पेट भरने के लिए ये चूहा मारकर खाते थे। बिहार में मुसहर जाति की पहचान इस रूप में भी की जाती है कि मुसहर समुदाय को दलितों में भी दलित माना जाता है।


इन्हीं मुसहर जाति के बाहुल्य वाले गाँवों में लोगों के सामाजिक जीवन में परिवर्तन लाने हेतु इफको टोकियो द्वारा आई.एफ.एफ.डी.सी. संस्था के माध्यम से इफको टोकियो समन्वित ग्रामीण विकास परियोजना का प्रारंभ किया गया। इस परियोजना का बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के मोतीपुर ब्लॉक के दो गाँवों मंगुरहा ताजपुर ग्राम पंचायत के पूर्वी मुशहर टोला व पश्चिम मुशहर टोला तथा ब्लॉक साहेबगंज के ग्राम सर्रैया मुसहर टोला में क्रियान्वयन किया जा रहा है।

इन गाँवों के निवासी अत्यधिक पिछड़े व शिक्षाविहीन हैं। रोजगार के साधन नहीं है, रोजगार के नाम पर मजदूरी आजीविका का साधन है, वह भी रोज नहीं मिलती। ग्रामीणों द्वारा पशुपालन, कृषि व मजदूरी से अपनी आजीविका चलाई जाती है। रोजगार की कमी के कारण इन गाँवों के ज्यादातर परिवार देशी शराब बनाकर अपनी आजीविका चलाते हैं। पशुपालन में सुअर पालन व लोगों में शिक्षा की कमी के कारण इन गाँवों में बहुत गंदगी रहती थी। यहाँ कोई भी परिवार ऐसा नहीं है जिसने 12वीं कक्षा से ज्यादा पढ़ाई की हो। लडकियों और औरतों कि स्थिति तो और भी खराब है। जल्दी शादी हो जाने के कारण 4 से 5 बच्चे कम उम्र (Child Pregnancy) में ही हो जाते हैं। गाँवों में सरकारी स्कूल हैं परंतु माँ-बाप अपने बच्चों को पढ़ने हेतु कम ही भेजते थे।


परियोजना शुरू होने के पश्चात् गाँवों का निरीक्षण करने पर पता चला कि गाँव के बच्चे स्कूल नहीं जाते और ना ही उनके परिवार उन्हें स्कूल भेजने में रुचि लेते हैं। इन सब स्थितियों का अध्ययन कर परियोजना के उच्चाधिकारियों से इस विषय पर मार्गदर्शन लिया गया तथा उनके निर्देशानुसार यह योजना बनाई गई कि ऐसे बच्चे जो कम उम्र में ही स्कूल जाना छोड़ देते हैं या इधर-उधर घूमते रहते हैं और अवांछित गतिविधियों में संलग्न रहते हैं, उनको शिक्षा के प्रति जागरूक किया जाये और उनको प्रारंभिक शिक्षा तथा खेलकूद कि सामग्री से परिचय करवा कर शिक्षा के प्रति जागरूक बनाया जाये। इसी उद्देश्य से इफको टोकियो समन्वित ग्रामीण विकास परियोजना के माध्यम से अक्षर परिचय अभियानप्रारंभ किया गया। इसकी शुरुआत गाँव पश्चिम टोला व पूर्वी टोला में की गई। इस कार्यक्रम को सफल बनाने हेतु गॉव कि महिलाओं व पुरूषों से बैठक कर बच्चों को इस अभियान में जोडने हेतु चर्चा की गई। समूह की महिलाओं व किशोरी बालिकाओं को भी हस्ताक्षर सीखने हेतु प्रेरित किया गया जिससे गॉव के किसी भी सदस्य को अगुँठा ना लगाना पडे़। पश्चिम टोला में 45 बच्चों द्वारा और पूरबी टोला में 20 बच्चों द्वारा प्रथम दिन शिक्षा प्राप्त करने हेतु नामांकन करवाया गया। इस कार्यक्रम के प्रारंभ में बच्चों हेतु रात्रि में कक्षा लगाई गई जिसमें बच्चों ने अपनी विशेष रुचि दिखाई। सरकारी स्कूल में 110 नामांकन थे और बच्चों कि उपस्थिति मात्र 10 या 15 ही रहती थी। इस कार्यक्रम को सफल बनाने हेतु परियोजना के उच्चाधिकारियों द्वारा समय-समय पर महत्वपूर्ण सहयोग व मार्गदर्शन प्रदान किया गया। उच्चाधिकारियों के मार्गदर्शन के उपरांत बच्चों हेतु पुस्तकें, कहानियों की किताबें, खेलकुद सामग्री व शिक्षाप्रद कहानियों की पुस्तकों के संग्रह व मोबाईल लाईब्रेरी की व्यवस्था की गई, जिससे बच्चों में शिक्षा के प्रति रूचि बढ़ने लगी। माह जनवरी 2023 में सरकारी स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या 10 से 15 हुआ करती थी वहीं अब ये संख्या बढ़कर 110 से 150 तक पहुँच चुकी है। इस कार्यक्रम को सरकारी स्कूल के अध्यापकों द्वारा खुब सराहा जा रहा है। वर्तमान में 15 स्वयं सहायता समूह की 181 महिलाओं में से 105 महिलाऐं हस्ताक्षर करना सीख गईं हैं। इस कार्यक्रम के तहत् बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक जीवन में सुधार लाने हेतु नमस्ते करना, साफ-सफाई, बोलने का तरीका, उठने-बैठने का तरीका, खेलकूद, प्रार्थना व राष्ट्रगान इत्यादि के प्रति भी जागरूक किया गया है। वर्तमान में परियोजना क्षेत्र के तीनों गाँवों में अक्षर परिचय अभियान चलाया जा रहा है और तीनों गाँव में 250 बच्चे इस कार्यक्रम में भाग ले रहे हैं। इस कार्यक्रम के तहत् आगामी समय में बच्चों को लैपटॉप व प्रोजेक्टर के माध्यम से आधुनिक शिक्षा दिलवाने की योजना बनाई गई है। इसके साथ ही बच्चों को सरकारी स्कूल में नामांकन करवा कर गाँव के प्रत्येक बच्चे को शिक्षित बनाना परियोजना का प्रथम लक्ष्य होगा।

विकास की धारा से दूरस्थ मुसहर जाति के इन गांवों में इफको-टोकियो समन्वित ग्रामीण विकास की परियोजना द्वारा अक्षर परिचय अभियानके इस छोटे से प्रयास से मुसहर समुदाय में आये बड़े परिवर्तन के परिणामों से समुदाय में काफी उत्साह दिखने लगा है।