किस्मत मौका देती है पर मेहनत चैंका देती है

सफलता मेहनत से मिलती है, इसके लिए कोई शॉर्टकट नहीं होता। शॉर्टकट के बल पर हासिल की गई सफलता कुछ समय के लिए ही टिकती है। यह सच है कि इसका रास्ता मुश्किलों भरा, लंबा और कुछ हद तक तन्हा होता है। मगर सफलता का एहसास इस रास्ते की सारी तकलीफें भुलाने के लिए काफी होता है। किस्मत मौका देती है पर मेहनत चैंका देती है। मेहनत इतनी खामोशी से करो की सफलता शोर मचा दे।

42 वर्षीय श्रीमती कल्पना गुरू पति श्री रामसजीवन गुरू ग्राम सुरखी, जिला सागर की निवासी हैं। उनके परिवार में एक पुत्र, दो पुत्रियाँ तथा बुजुर्ग सास सहित कुल 06 सदस्य हैं। पति के बेरोजगार होने के कारण आजीविका का कोई स्त्रोत नहीं था। परिवार का भरण-पोषण बुजुर्ग सास की पेंशन से होता था। जैसे-तैसे परिवार में खाने-पीने की व्यवस्था हो जाती थी। आर्थिक तंगी के चलते बच्चों को पढाना-लिखाना भी संभव नहीं हो पा रहा था। बुजुर्ग सास अक्सर बीमार हो जाती थी जिससे उनकी पेंशन उनके इलाज में ही खर्च हो जाती थी। दिन-प्रति दिन कल्पना की आर्थिक स्थिति खराब होती जा रही थी।


 

आई.एफ.एफ.डी.सी के सहयोग से नाबार्ड द्वारा वित्तपोषित मध्य प्रदेश के सागर जिला में सुरखी-घाना वाॅटरशेड परियोजना 29 अप्रैल 2016 को शुरू की गई। वाटरशेड विकास परियोजना का उद्देश्य किसानों के खेतों में मिट्टी के कटाव को रोकना, स्वयं सहायता समूह गठन व आजीविका गतिविधियाँ, फसल प्रदर्शन व वृद्वि का तकनीकी ज्ञान, रोजगार सृजन व स्थायी कृषि गतिविधियों को बढ़ावा देना व आय में वृद्धि करना व क्षमता विकास करना था।

इस बीच आई.एफ.एफ.डी.सी. द्वारा वाटरशेड परियोजना का कार्य शुरू किया गया जिसके अंतर्गत स्वयं सहायता समूह बनाने का कार्य किया गया। आजीविका गतिविधियों के तहत श्रीमती कल्पना गुरू भी समूह से जुड़ी। उनके समूह का नाम माँ हरिसिद्ध है। कल्पना गुरू ने पूरी ईमानदारी के साथ समूह में कार्य किया व माह में 25-50 रुपये की बचत शुरू की। धीरे-धीरे बढ़ते-बढ़ते जब बचत की राशि जब 3000/- रुपये हुई तो समूह से 5000/- रुपये का ऋण लेकर सिलाई मशीन खरीदी व आस-पास के घरों की सिलाई का कार्य करने लगी। वह रोज 4-5 ब्लाउज बना लेती थी जिससे वह अब रोज 300 रुपये तक कमाने लगी। जब उसकी बचत 7000 रुपये हुई तब समूह से 15000 रुपये ऋण लिया व आटा चक्की की दुकान खोली जिससे प्रतिदिन 200 रुपये तक की आमदनी होने लगी। अब उसने बच्चों को पढाना-लिखाना शुरू किया। कल्पना हर बैठक में, समूह के हर कार्यक्रम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने लगी और दूसरी महिलाओं को भी प्रेरित करने लगी। जब कल्पना की बचत राशि 25000 रुपये हुई तब उसने 40000 रुपये का समूह से ऋण लिया व पुरानी फोरव्हीलर गाड़ी खरीदी व अपने बेरोजगार पति को इस से रोजगार दिलाया। उसका पति गाड़ी को किराये से चलाने लगा। धीरे-धीरे घर की स्थिति में सुधार होता चला गया। अब श्रीमती कल्पना अपने बच्चों को काॅलेज में पढ़ाने लगी।

वाटरशेड परियोजना के तहत् आजीविका में सुधार, आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने के उद्देश्य से प्रशिक्षण व एक्सपोजर भ्रमण कराया गया व बैक लिंकेज से स्वयं सहायता समूहों को बैंक क्रेडिट सुविधा उपलब्ध कराई गई, जिससें महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया जा सके। इसके लिए परियोजना द्वारा श्रीमति कल्पना गुरू को कम्प्यूटर व उच्च गुणवत्तापूर्ण सिलाई सिखाने हेतु प्रशिक्षित किया गया और बैंक से कियोस्क बैंक की शाखा दिलाई गई। अब कल्पना समय से महिलाओं, श्रमिकों का नेट बैकिंग से भुगतान करने लगी।

अब उनकी मासिक आय 9000 रुपये प्रतिमाह हो गई है। उनकी बड़़ी बेटी अब एम.ए., बेटा आई.टी.आई. कर रहा है व छोटी बेटी 10वीं कक्षा में पढ़ रही है। कल्पना संस्था का हर समय शुक्रिया करते नहीं थकती है।

कल्पना ने न केवल स्वयं को आत्मनिर्भर बनाया बल्कि पति को रोजगार से लगाया व बच्चों को उचित शिक्षा दिलाई व आर्थिक स्थिति को सुधारा है और अन्य महिलाओं के लिए वे एक प्रेरणा बनी है। यह इनकी मेहनत की सफलता है।